Thursday, March 30, 2023
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आज नर्मदा जयंती पर जानिए पैराणिक महत्व और पूजन विधि

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भारत देश में नदियों को भी देवी-देवताओं की तरह पूजा जाता है। हर नदी का अपना महत्व और इतिहास है। मध्य प्रदेश की जीवन रेखा कही जाने वाली नर्मदा नदी भी इन पवित्र नदियों में से एक है। हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को नर्मदा जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये तिथि 28 जनवरी, शनिवार को है। इस दिन नर्मदा नदी के घाटों पर विशेष पूजा व कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। आगे जानिए नर्मदा जयंती की पूजा विधि व अन्य खास बातें

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आज नर्मदा जयंती पर जानिए पैराणिक महत्व और पूजन विधि

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नर्मदा जयंती का पैराणिक महत्व

नर्मदा नदी के अवतरण तिथि को नर्मदा जयंती महोत्सव के रूप में धूमधाम से मानते हैं. मध्यप्रदेश राज्य के अमरकंटक में इस त्यौहार की भव्यता देखते ही बनती हैं. लोग महीनों पूर्व से ही इस त्यौहार की तैयारियों में जुट जाते हैं. हर वर्ष प्रदेश के मुख्यमंत्री इस पर्व में शामिल होकर इसकी शुरुआत करते हैं. इस साल यह पर्व फरवरी महीने की 12 तारीख को मंगलवार के दिन मनाया जायेगा

आज नर्मदा जयंती पर जानिए पैराणिक महत्व और पूजन विधि

नर्मदा जयंती महोत्सव पर नर्मदा के किनारे वाले मुख्य शहरों जैसे महेश्वर, उज्जैन आदि जगहों पर धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता हैं. नदी के किनारों को सजाया जाता हैं, महायज्ञ किये जाते हैं और शाम के समय प्रसादी के रूप में भंडारे किये जाते हैं. यह त्यौहार पूरे एक सप्ताह तक इसी प्रकार मनाया जाता हैं. नर्मदा जयंती महोत्सव को देखने के लिए देश से नहीं बल्कि विदेशों से भी काफी सैलानी आते हैं. भारत में अन्य नदियाँ भी हैं लेकिन किसी भी नदी का इस तरह सात दिनों तक महोत्सव नहीं मनाया जाता हैं.

मां नर्मदा की पूजा कैसे करे (पूजन विधि)

वैसे तो मां नर्मदा की पूजा नर्मदा नदी के तट पर ही करनी चाहिए, लेकिन ऐसा न कर पाएं तो घर पर भी ये पूजा आसान विधि से कर सकते हैं। इस दिन सुबह जल्दी उठकर नहाने के पानी में नर्मदा का जल मिलाकर स्नान करें।

इसके बाद एक साफ स्थान पर चौकी रखें और इसके ऊपर सफेद कपड़ा बिछाकर मां नर्मदा की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें। देवी नर्मदा के चित्र के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाएं। इसके बाद फूल चढ़ाएं व हार पहनाएं।

मां नर्मदा को सफेद फूल, फल और मिठाई चढ़ाएं। साथ ही सफेद वस्त्र भी अर्पित करें। इस तरह पूजा के बाद मां नर्मदा की कथा सुनें और आरती करें। अंत में प्रसाद सभी भक्तों को बांट दें।

संभव हो तो इस दिन उपवास रखें या एक समय भोजन करें। दिन भर शांत मन के साथ मां नर्मदा का ध्यान करते रहें। इस तरह नर्मदा जयंती पर मां नर्मदा की पूजा करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है।

माँ नर्मदा स्नान के फायदे
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य के अनुसार, नर्मदा नदी में स्नान करने से ही कई परेशानियों का अंत हो जाता है। कालसर्प व ग्रह दोष की शांति भी इस पवित्र नदी में स्नान करने से हो जाती है। आगे जानिए नर्मदा नदी में स्नान के लाभ…

  1. किसी भी महीने के अमावस्या तिथि पर नर्मदा में स्नान करें और चांदी से निर्मित नाग नर्मदा में विसर्जन करें। इससे कालसर्प दोष की शांति होती है।
  2. ग्रहों की शांति भी नर्मदा में स्नान करने से होती है। मंगल, शनि, राहु, केतु के दोष तो इस जल के स्नान मात्र से दूर हो जाते हैं।
  3. वैवाहिक जीवन की खुशहाली के लिए इस नदी में स्नान कर भगवान शिव और पार्वती की पूजा करनी चाहिए।
  4. इस नदी के जल से पितरों का तर्पण भी करना भी बहुत पुण्य कर्म माना गया है। इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।

    नर्मदा नदी से जुडी कहानियाँ

    हिन्दू धर्मं की सप्त पावन नदियों में से नर्मदा एक हैं. इसके महत्व से जुडी कई कहानियाँ हमारे पुराणों में मौजूद हैं. जिसमे में मुख्य कुछ इस प्रकार हैं

    अंधकासुर के वध से जुडी हुई
    वामन पुराण की एक कथा के अनुसार अंधकासुर भगवान शिव और पार्वती का पुत्र था. एक दैत्य हिरण्याक्ष ने भगवान शिव की घोर तपस्या करके उन्ही की तरह बलवान पुत्र पाने का वरदान माँगा. भगवान शिव ने एक क्षण भी गवाए अपना पुत्र “अन्धक” हिरण्याक्ष को दे दिया. अंधकासुर भगवान शिव का परम भक्त था उसने भगवान शिव की भक्ति कर उनसे से 2000 हाथ, 2000 पांव, 2000 आंखें, 1000 सिरों वाला विकराल स्वरुप प्राप्त किया. लेकिन जैसे ही जैसे हिरण्याक्ष की ताकत बढते चली गई उसके अत्याचार बढते चले गए. भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध कर दिया. पिता की मृत्यु की खबर सुनते ही अंधकासुर के मन में बदले की भावना जल उठी. वह विष्णु और महादेव को अपना शत्रु मानने लग गया.

    अंधकासुर ने अपने बल और पराक्रम से देवलोक पर अपना अधिपत्य जमा लिया. ऐसा कहा जाता हैं राहू और केतु के बाद अंधकासुर एकलौता ऐसा दैत्य था जिसने अमृत का पान किया था. देवलोक पर आधिपत्य करने के बाद अंधकासुर ने कैलाश की और अपना रुख किया. कैलाश में अंधकासुर और महादेव के बीच घोर युद्ध होता हैं. जिसमे शिवजी अंधकासुर का वध करते हैं.

    अंधकासुर के वध होने के बाद देवताओं को भी अपने द्वारा किये गए पापों का ज्ञात होता हैं. सभी देवता, भगवान विष्णु और ब्रह्मा, भगवान शिव के पास आते हैं जो कि मेकल पर्वत (अमरकंटक) पर समाधिस्थ थे. शिव अंधकासुर राक्षस का वध कर शांत-सहज समाधि में बैठे थे. अनेकों स्तुतियाँ, वंदना और प्रार्थना करने के बाद भगवान शिव अपनी आँखे खोलते हैं. सभी देवता निवेदन करते हैं “हे भगवन, अनेकों प्रकार के विलास, भोगो और असंख्य दैत्यों के वध से हमारी आत्मा पापी हो चुकी हैं, इसका निवारण कैसे किया जाए. कैसे हमें पुण्य की प्राप्ति होगी”. जिसके बाद भगवान शिव के सिर से पसीने की एक बूंद धरती पर गिरती हैं. कुछ ही क्षणों में वह बूंद तेजोमय कन्या के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं. उस कन्या का नाम नर्मदा (नर्म का अर्थ है- सुख और दा का अर्थ है- देने वाली) रखा गया और अनेकों वरदानों से कृतार्थ किया.

    भगवान शिव ने नर्मदा को माघ मास की शुक्ल सप्तमी से नदी के रूप में बहने और लोगों के पापों को हरने का आदेश दिया. नर्मदा के अवतरण की इसी तिथि को नर्मदा जयंती (Narmada Jayanti) मनाई जाती हैं. शिव से आदेश मिलने के बाद नर्मदा प्रार्थना करते हुए कहती हैं कि “भगवन! मैं कैसे लोगों के पाप दूर का सकती हैं” तब भगवान विष्णु नर्मदा को आशीर्वाद देते हैं

    “नर्मदे त्वें माहभागा सर्व पापहरि भव,
    त्वदत्सु याः शिलाः सर्वा शिव कल्पा भवन्तु ताः”

    अर्थात नर्मदा तुम्हारे अंदर संसार के सभी पापों को हरने की क्षमता होगी. तुम्हारे जल से शिव का अभिषेक किया जायेगा. भगवान शिव ओमकारेश्वर के रूप में सदैव तुम्हारे तट पर विराजमान रहेंगें और उनकी कृपा तुम पर बन रहेगी. जिस प्रकार स्वर्ग से अवतरित होकर गंगा प्रसिद्द हुई थी उसी प्रकार तुम भी जानी जाओगी.

    Note: यह कथा और पूजन विधि सोशल मीडिया के द्वारा ली गयी है होशंगाबाद मीडिया इसकी पुष्टि नहीं करता है

    आपको और आपके समस्त परिवार को होशंगाबाद मीडिया की ओर से नर्मदा जयंती की हार्दिक शुभकामनाये।

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